कृष्णमोहन झा

18 वीं लोकसभा के चुनावों में कांग्रेस और भाजपा की ओर से एक दूसरे पर तीखे हमले किए जा रहे हैं। दोनों ही दलों का प्रचार अभियान "आक्रमण ही सर्वोत्तम बचाव है" की नीति पर आधारित है भाजपा के लिए तो यह नीति उसके प्रचार अभियान को धारदार बनाने में कारगर साबित हो रही है परन्तु कांग्रेस की दुविधा यह है कि उसके अपने वरिष्ठ नेता ही अपने अनावश्यक बयानों से पार्टी को बार बार बचाव की मुद्रा अपनाने के लिए विवश कर रहे हैं। पार्टी को अपने विवादास्पद बयानों से मुश्किल में डालने वाले वरिष्ठ नेताओं में इस बार सैम पित्रोदा सबसे आगे निकल गए हैं और यह भी कम आश्चर्य की बात नहीं है कि सैम पित्रोदा ने पार्टी को मुश्किल में डालने वाला बयान पहली बार नहीं दिया है। उनके एक बयान से उपजा विवाद शांत भी नहीं हो पाता कि वे फिर कोई ऐसा बयान दे देते हैं जो पार्टी को असहज स्थिति का सामना करने के लिए मजबूर कर देता है सवाल यह उठता है कि अतीत में गांधी परिवार के अत्यंत निकट माने जाने वाले सैम पित्रोदा को लोकसभा चुनावों के दौरान बार बार विवादास्पद बयानों से परहेज़ करने की अनिवार्यता का अहसास क्यों नहीं है। देश के विभिन्न भागों में रहने वाले लोगों की त्वचा के रंग को लेकर दिए गए उनके ताजे बयान ने तो कांग्रेस पार्टी को इतनी मुश्किल में डाल दिया कि उसे अपने नुकसान की भरपाई के लिए सैम पित्रोदा से इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा लेने के लिए मजबूर होना पड़ा लेकिन पार्टी को भी इस हकीकत का अहसास तो अवश्य होगा कि इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष पद से सैम पित्रोदा का इस्तीफा ही उनके बयान से हुए नुकसान की भरपाई के लिए पर्याप्त नहीं है। असली सवाल तो यह है कि वर्तमान लोकसभा चुनावों की प्रक्रिया जारी रहने तक क्या यह सिलसिला यूं ही चलता रहेगा। यहां यह भी विशेष उल्लेखनीय है कि इंडिया गठबंधन के अन्य घटक दलों के नेताओं ने भी सैम पित्रोदा के उक्त बयान को आपत्तिजनक बताया है। हाल में ही एक अंग्रेजी अखबार को दिए गए साक्षात्कार में सैम पित्रोदा ने कहा था " हम भारत जैसे विविधता से भरे देश को एक जुट रख सकते हैं जहां पूर्व में रहने वाले लोग चाइनीज जैसे दिखते हैं

 पश्चिम में रहने वाले अरब जैसे दिखते हैं, उत्तर में रहने वाले मेरे ख्याल से गोरे लोगों की तरह दिखते हैं वहीं दक्षिण में रहने वाले अफ्रीकी जैसे लगते हैं । इससे कोई फर्क नहीं पड़ता ,हम सब भाई बहन हैं।"सैम पित्रोदा के इस बयान पर विवाद तो छिड़ना ही था। भाजपा ने पित्रोदा के बयान को नस्लीय बताया तो खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नाराज होते हुए कहा कि "क्या दशा में चमड़ी के आधार पर योग्यता तय होगी।" सैम पित्रोदा के विवादास्पद बयान से चुनाव में कांग्रेस को होने वाले नुकसान को भांपते हुए पार्टी के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने सैम पित्रोदा के बयान से पार्टी को अलग करते हुए कहा कि उन्होंने विविधताओं को लेकर जो उपमाएं दी हैं वे दुर्भाग्यपूर्ण और अस्वीकार्य हैं । इतना ही नहीं, कांग्रेस पार्टी ने तत्काल ही इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष पद से सैम पित्रोदा का इस्तीफा भी मांग लिया। इंडिया गठबंधन के अनेक घटक दलों के नेताओं ने भी सैम पित्रोदा के बयान की आलोचना करने से परहेज़ नहीं किया। आश्चर्यजनक बात तो यह है कि अंग्रेजी अखबार को साक्षात्कार देते समय सैम पित्रोदा आखिर यह अंदाजा क्यों नहीं लगा पाए कि उनकी उनकी ये 'उपमाएं ' चुनाव में पार्टी को बचाव की मुद्रा में आने के लिए मजबूर कर सकती हैं लेकिन यह पहला मौका नहीं है कि जब कांग्रेस पार्टी को सैम पित्रोदा के किसी बयान ने मुश्किल में डाल दिया हो । अतीत में सैम पित्रोदा के बयान पार्टी के लिए मुश्किल खड़ी कर चुके हैं। लोकसभा चुनावों की प्रक्रिया प्रारंभ होने के बाद जब उन्होंने अपने एक बयान में अमेरिका में विरासत में मिली संपत्ति पर लगने वाले टैक्स का उल्लेख किया तो भाजपा ने उसे चुनावी मुद्दा बनाने में कोई देर नहीं की । प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तो अपने अनेक चुनावी भाषणों में लोगों को इस तरह सतर्क किया कि अगर कांग्रेस सत्ता में आई तो भारत में भी लोगों को विरासत में मिलने वाली संपत्ति का आधा हिस्सा उनसे सरकार छीन लेगी । प्रधानमंत्री ने सैम पित्रोदा के उस बयान को लेकर कांग्रेस पर इतने तीखे हमले किए कि पार्टी सफाई देते देते थक गई है। सैम पित्रोदा ने पांच साल पहले हुए लोकसभा चुनावों के दौरान भी यह बयान देकर पार्टी की मुसीबतें बढ़ा दी थीं कि मध्यम वर्ग को स्वार्थी नहीं बनना चाहिए बल्कि अधिक टैक्स देने के लिए तैयार रहना चाहिए। सैम पित्रोदा के इस बयान के बाद कांग्रेस पार्टी को यह सफाई देनी पड़ी कि उसके सत्ता में आने पर मध्यम वर्ग पर करों का बोझ नहीं डाला जाएगा।उसी दौरान सैम पित्रोदा ने यह भी कहा था कि अब हमें 1984 के सिख विरोधी दंगों की दुखद यादें भुला कर यह देखना चाहिए कि भाजपा सरकार ने पांच साल में क्या किया। पुलवामा में भयावह आतंकी हमले के बाद जब भारतीय सेना ने बालाकोट में एयर स्ट्राइक की थी तब सैम पित्रोदा के इस बयान ने पार्टी को असहज स्थिति का सामना करने के लिए मजबूर कर दिया कि ऐसे हमले तो होते रहते हैं और कुछ आतंकवादियों की करतूत की सजा पूरे पाकिस्तान को क्यों दी जा रही है। सैम पित्रोदा के आपत्तिजनक बयानों के ऐसे अनेक उदाहरण मिल सकते हैं जिनके कारण कांग्रेस पार्टी को सफाई देने के लिए विवश होना पड़ा परन्तु क्या कांग्रेस पार्टी के पास इस सवाल का जवाब है कि 'विशिष्ट बौद्धिक संपदा के धनी' अपने इस वरिष्ठ राजनेता को वह आपत्तिजनक बयान देने से रोकने में उसे पहले सफलता क्यों नहीं मिली।

(लेखक राजनैतिक विश्लेषक एवं सहारा मीडिया समूह के स्टेट ब्यूरो हेड है)

न्यूज़ सोर्स : Sam Pitroda has already given objectionable statements