भोपाल। खूबसूरत सदाबहार ग़ज़लों से सजी हुई एक शाम थी । जिसके अंतर्गत शायरी की समृद्ध परंपरा को संरक्षित करने का प्रयास किया गया जो भारत की सांस्कृतिक और साहित्यिक धरोहर का अभिन्न हिस्सा है। साथ ही युवा और प्रतिभाशाली कलाकारों को प्रस्तुति देने के लिए अवसर प्रदान करना भी इसका उद्देश्य है। क्लब लिट्राटी कला, साहित्य, संस्कृति के क्षेत्र में इसी प्रकार के कार्यक्रम आयोजित करती है जो भारत के साहित्यिक एवं सांस्कृतिक परिदृश्य को समृद्ध करने की प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं।

 कार्यक्रम "नग़्मा-ए-रूह" में दो प्रतिभाशाली कलाकार सारा मेहदी और समर मेहदी द्वारा ग़ज़लें पेश की गईं।

 

कलाकारों का परिचय:

समर मेहदी: प्रख्यात गायक, गीतकार और फिंगरस्टाइल गिटार वादक, जो अपनी भावपूर्ण रचनाओं और संगीत से गहरे जुड़ाव के लिए प्रसिद्ध हैं।

सारा मेहदी: बहुमुखी गायिका, जो शास्त्रीय, ग़ज़ल और बॉलीवुड सहित कई शैलियों में निपुण हैं। उनकी आवाज़ ग़ज़लों की आत्मा को बखूबी प्रस्तुत करती है।

कार्यक्रम में जिन ग़ज़लों की प्रस्तुति हुई उनमें से कुछ निम्नानुसार हैं...

 

"आज जाने की ज़िद न करो" – प्रेम और कोमलता से भरा एक सदाबहार क्लासिक।

"तुमको देखा तो ये ख्याल आया" – प्रेम की अप्रत्याशित सुंदरता पर एक काव्यात्मक अभिव्यक्ति।

"वो हमसफर था" – साझा यात्राओं और खट्टी-मीठी विदाई की एक भावुक ग़ज़ल।

"मुझे तुम नज़र से गिरा तो रहे हो" – प्रेम में संवेदनशीलता की मार्मिक प्रस्तुति।

- हर तरन्नुम में मिली है तेरी आवाज़ मुझे

- मैं हवा हूँ कहाँ वतन मेरा

कार्यक्रम के माध्यम से संदेश:

यह प्रस्तुति पीढ़ियों को जोड़ने का प्रयास है, जो परंपरा और आधुनिकता को जोड़ते हुए समृद्ध संगीत परंपरा का नया और आधुनिक रूप पेश करती है।

 

सीमा रायजादा

अध्यक्ष

क्लब लिट्राटी

98270 55738

न्यूज़ सोर्स : "Naghma-e-Rooh" organized by Club Literati at State Museum Bhopal