- संतोष सिंह गौतम
( लेखक मध्यप्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता )

बेहद सहज, सरल और अहम से परे हैं कमलनाथ 

वह इमरजेंसी का जमाना था लेकिन लुटियंस में दावतों का दौर थमा नहीं था। ऐसे में एक रोज वरिष्ठ पत्रकार व ख्यात लेखक कुलदीप नैयर से एक डिनर पार्टी के दौरान आईबी के एक अधिकारी ने कहा "हमें आदेश मिला है कि हम यह पता लगाएं कि चुनाव होने की स्थिति में विभिन्न राजनीतिक दलों की चुनावी संभावनाएं क्या हैं?" नैयर के लिए यह एक महत्वपूर्ण सुराग था कि इंदिरा गांधी देश में चुनाव कराना चाहती हैं लेकिन उनकी मुश्किल यह थी कि इस खबर की पुष्टि कैसे हो! इसी ऊहापोह में वे एक दिन सुबह-सुबह संजय गांधी के करीबी दोस्त कमलनाथ के घर पहुंच गए। चाय की मेज पर उन्होंने कमलनाथ से सवाल किया "चुनाव कब हो रहे हैं?" आश्चर्य व्यक्त करते हुए कमलनाथ ने कहा "यह जानकारी आपको कैसे मिली!" अनुभवी पत्रकार कुलदीप नैयर के लिए इतना बहुत था, खबर की पुष्टि हो चुकी थी। इंडियन एक्सप्रेस के सभी संस्करणों में यह महत्वपूर्ण खबर प्रमुखता से छपी।

इस वाकये का जिक्र मैंने यहां इसलिए किया ताकि यह पता लग सके कि कमलनाथ गांधी परिवार के कितने विश्वसनीय, निष्ठावान व हमराज थे कि कुलदीप नैयर जैसे अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा प्राप्त पत्रकार को भी अपनी अपुष्ट खबर की पुष्टि के लिए उस व्यक्ति का सहारा लेना पड़ा, जो उस वक्त तक सांसद भी नहीं था। 

गांधी परिवार खासकर संजय की इतनी विश्वसनीयता कमलनाथ को रातों-रात नहीं मिली थी। दून स्कूल के दिनों में संजय गांधी के साथ परवान चढ़ी इस दोस्ती का रंग गहराता चला गया। कलकत्ता के सेंट ज़ेवियर्स से वाणिज्य में स्नातक की शिक्षा ग्रहण करने पहुंचे कमलनाथ का दिल दिल्ली में ही अटका रहा, जहां संजय गांधी राजनीति का केंद्र बनते जा रहे थे। वे विपक्ष के निशाने पर थे और उन्हें उस समय जिस चीज की सबसे अधिक जरूरत थी, वह थी विश्वसनीय दोस्तों की। ऐसे समय में कमलनाथ, संजय गांधी के लिए ढाल बनकर सामने आए। 

आपातकाल के बाद जब जनता सरकार बनी तो एक मामले में न्यायालय ने संजय गांधी को तिहाड़ जेल भेज दिया। इंदिरा गांधी को संजय की सुरक्षा की चिंता सताने लगी। उन्हें लगा कि संजय गांधी के आसपास उनका कोई विश्वसनीय व्यक्ति होना चाहिए। इंदिरा की चिंता बेबुनियाद नहीं थी क्योंकि संजय पूरी सरकार, खासकर चरण सिंह के निशाने पर थे। इस परिस्थिति को भांपते हुए एक दिन न्यायालयीन पेशी पर जब संजय गांधी को लाया गया तो कोर्ट रूम में कमलनाथ ने जज पर कागज का गोला फेंक दिया। नाराज जज ने कमलनाथ पर पांच सौ रुपये का जुर्माना कर दिया। पहले से तय स्क्रिप्ट के अनुसार कमलनाथ ने जुर्माना भरने से इनकार कर दिया और जेल पहुंच गए - संजय के पास। 

संजय और इंदिरा गांधी के प्रति इसी समर्पण भाव के चलते कमलनाथ को 1980 में पिछड़े आदिवासी इलाके और कांग्रेस के मजबूत गढ़ छिंदवाड़ा से कांग्रेस का टिकट मिला, वे जीते और उसके बाद छिंदवाड़ा के विकास का स्वर्णिम अध्याय लिखा जाना प्रारंभ हुआ। कमलनाथ चुनाव दर चुनाव जीतते चले गए और छिंदवाड़ा के विकास को मानो पंख लग गए। वहां सीआईआई का स्किल्स ट्रेंनिंग सेंटर, एनआईआईटी के सेंटर जैसे कई रोजगारोन्मुखी प्रशिक्षण संस्थान स्थापित हुए, रेडीमेड गारमेंट्स की सिरमौर शाही एक्सपोर्ट्स की फैक्ट्री लगी, बेहतरीन सड़कों का निर्माण हुआ, फ्लाईओवर बने, सत्तावन किलोमीटर लंबी रिंग रोड बनी, पॉलीहाउस बनना शुरू हुए, ड्रिप इरिगेशन से सिंचाई होने लगी और ज्वार-बाजरा जैसी परंपरागत खेती से यदि छिंदवाड़ा के किसानों ने मक्का-सोयाबीन जैसी नकदी फसलों की ओर रुख किया, आधुनिक कृषि को अपनाया तो इसके पीछे कमलनाथ की प्रेरणा और प्रोत्साहन ही था। विकास का यह 'छिंदवाड़ा माॅडल' पूरे देश में चर्चा का विषय बन गया। कमलनाथ छिंदवाड़ा के पर्याय बन गए।  वर्ष 2018 की 26 अप्रैल को जब कमलनाथ पहली बार प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष बने तो सात महीने बाद उनकी अगुवाई में हुए चुनावों में कांग्रेस ने भाजपा की डेढ़ दशक पुरानी सत्ता को उखाड़ फेंका। 

किसान कर्ज माफी, सौ रुपये में सौ यूनिट बिजली, राम वन गमन पथ, महाकाल काॅरिडोर और एक हजार गौशालाओं के निर्माण का संकल्प, इंदौर, भोपाल में मेट्रो की आधारशिला रखना, राइट टू हेल्थ और राइट टू वाटर जैसी अपनी जनहितैषी योजनाओं के साथ-साथ कमलनाथ छिंदवाड़ा की तरह मध्यप्रदेश के विकास को भी पंख लगाने के लिए निवेश का वातावरण तैयार कर रहे थे क्योंकि उनकी यह दृढ़ मान्यता है कि निवेश मांगने से नहीं आता, बल्कि उसके लिए माहौल तैयार कर, उसे आकर्षित करना पड़ता है। 

कमलनाथ अपने इन सब उद्देश्यों और योजनाओं को पूरा करने के लिए उन्हें अमली जामा पहना ही रहे थे कि साम-दाम-दंड-भेद के द्वारा भाजपा ने कांग्रेस की सरकार गिरा दी। एक संभावनाशील सरकार का इस तरह चले जाना लाखों कांग्रेस कार्यकर्ताओं के साथ ही कमलनाथ को भी बेहद आहत कर गया, प्रदेश के विकास को लेकर देखा गया उनका सपना अधूरा रह गया। इस अनपेक्षित झटके से उबर पाना आसान नहीं था लेकिन पुनः अपनी सरकार लौटाने के लिए प्रतिबध्द कमलनाथ ने दिल्ली लौटने की बजाय भोपाल में ही डेरा डाल दिया और तब से लेकर अब तक वे पूरी शिद्दत के साथ एक-एक कार्यकर्ता से मिल रहे हैं, फीडबैक ले रहे हैं, रणनीतियां बना रहे हैं और भाजपा के संगठन से मुकाबले के लिए मंडलम और बूथ तक की तैयारियों पर अपनी पैनी नजर बनाए हुए हैं। 

वे बेहद सरल और अहम से परे हैं। विक्रम अहाके जैसे एक आदिवासी गरीब लड़के को छिंदवाड़ा का महापौर बना कर सच्चा सशक्तिकरण करने वाले कमलनाथ गोंड, कोरकू और भिलाला आदिवासियों की बस्तियों और फालियों में भी बेहद सहज नजर आते हैं, वहां उन्हें देखकर कोई यह कह नहीं सकता कि ये वही कमलनाथ हैं जिन्हें हमने लुटियंस की सत्ता दीर्घाओं में अपनी चमक बिखेरने से लेकर रियो डि जेनेरो, न्यूयॉर्क और दावोस में हेनरी पॉल्सन, पीटर मेंडल्सन और चार्ल्स श्वाब जैसे प्रभावशाली दोस्तों के साथ बेबाकी से ठहाके लगाते देखा है।