राकेश दुबे                

रुस और यूक्रेन युद्ध विश्व युद्ध की और जाता हुआ दिख रहा है। 1 मई को रुस द्वारा किए जाने वाला शक्ति प्रदर्शन एक नया समीकरण बनाएगा। आज ही की भाँति तब भी बहुत सारे देश भारत की निरपेक्षता पर सवाल पूछेंगे।  हक़ीक़त में भारत इन दिनों जिस भाषा या भाव में बात कर रहा है, उसे वास्तव में ऐसा ही करना चाहिए। एक स्थिर लोकतंत्र, विशाल आबादी और खुले बाजार वाले भारत को जो लाभ मिलने चाहिए, वे उसे अभी तक नहीं मिले हैं।भारत की दृढ़ता न केवल लाभ दिला सकती है, बल्कि भारत की रक्षा पंक्ति को भी मजबूत कर सकती है। कम से कम देशवासियों को यह भरोसा रखना चाहिए कि भारत की विदेश नीति वही है, जो पहले थी, लेकिन अब परिस्थितियां बदल गई हैं और पश्चिम के देश कमजोर जमीन पर आ गये हैं।

सर्व विदित है कुछ देशों का पक्षपात भारत ही नहीं, पूरी दुनिया झेलती आ रही थी, ऐसे पक्षपाती देशों की नीतियां औंधे मुंह गिरेंगी यह किसी को अनुमान नहीं था, वे नीतियाँ गिरने लगी हैं। ऐसे पक्षपाती देशों की नसीहत पहले भारत सुन लेता था , लेकिन अब कोई जरूरत नहीं है कि उनके कुतर्कों को सुना जाए या ऐसे उपदेशों को सुना जाए, जिस पर स्वयं पश्चिम के देश नहीं चल रहे हैं। यह नीति उचित ही है कि भारत अपनी शर्तों पर दुनिया से रिश्ते निभाएगा और इसमें उसे किसी की सलाह की जरूरत नहीं है। 
रायसीना डायलॉग में भारत की नीति की व्याख्या करते हुए भारत के विदेश मंत्री ने बहुत गहरी बात कही है कि “वे कौन हैं, समझकर दुनिया को खुश रखने की जगह, हमें इस आधार पर दुनिया से रिश्ते बनाने चाहिए कि हम कौन हैं!” दुनिया हमारे बारे में बताए और हम दुनिया से मंजूरी लें, वह दौर खत्म हो चुका है। साथ ही साथ  उन्होंने यह भी कह दिया कि अगले २५  वर्षों में भारत वैश्वीकरण का केंद्र होगा। अगर यह देश का संकल्प है तो ऐसा संकल्प शुभ  है, लेकिन इसे साकार करने के लिए बुनियादी रूप से हमें मजबूत होना पडे़गा।
भारत को आज अर्थव्यवस्था की ज्यादा चिंता करना जरूरी है। जब भारत में पर्याप्त निवेश होगा, भरपूर रोजगार होगा, तो हामर देश भारत के सकल घरेलू उत्पाद में बढ़ोतरी होगी।  भारत को यह भी नहीं भूलना चाहिए कि ऐसे सपने अनेक नेताओं ने पहले भी भारतवासियों को दिखाए हैं, लेकिन वास्तव में भारत अपने यहां आतंकवाद, अशिक्षा और गरीबी जैसी समस्या का मुकम्मल समाधान नहीं खोज पा रहा है।
अगर भारतवासी चाहते हैं कि दुनिया में भारत को एक सशक्त देश के रूप में देखा जाए, इसके लिए आत्मनिर्भरता भी बहुत जरूरी तत्व है। आत्मनिर्भरता ही भारत को वैश्वीकरण के केंद्र में लाएगी। आज देश की सोच की दिशा बिल्कुल सही है, भारत को व्यापक रूप में सोचने की ज़रूरत है कि देश किस दिशा और कहाँ विफल रहा  हैं?  भारत का अपनी विफलताओं का वाजिब अध्ययन ही उसे विकास की ओर तेजी से ले जाएगा। 
वैसे यूरोपीय देश आए दिन भारत को सलाह दे रहे हैं कि वह रूस के साथ और व्यापार न करे। भारत अब बार-बार यह इशारा कर रहा हैं कि भारत को किसी से सलाह लेने की जरूरत नहीं है। भारत के विदेश मंत्री  चीन का नाम लिए बगैर बिल्कुल सही सवाल उठाया है कि यूरोप उस वक्त असंवेदनशील क्यों हो गया था, जब एक देश एशिया को धमका रहा था?
हक़ीक़त में, यह यूरोप के लिए जागरण का समय है उसे चाहिए कि वह एशिया की ओर देखें । एशिया में भी अस्थिर सीमाएं और आतंकवाद जैसी समस्याएं खतरा बनी हुई हैं। अभी पश्चिमी देश एशियाई देशों को केवल सलाह देकर काम निकालते आए हैं। जो देश सैन्य ताकत पर भरोसा करते हैं, वे भी भारत या एशिया के देशों को परस्पर वार्ता से विवाद सुलझाने की सलाह तो दे देते हैं, जबकि पीछे से विवादों की ओर से आंख मूंदकर सबके लिए समस्याएं ही बढ़ाते हैं। अब हालात बदलते दिख रहे हैं पश्चिमी देशों को भारत की जायज चिंताओं पर गौर करना ही होगा और  लगता है इसकी शुरुआत हो चुकी है। उनके विचार का दृष्टिकोण अलग हो सकता है, भारत की अपनी भूमिका और तैयारी स्पष्ट और मज़बूत होना ही नहीं दिखना भी चाहिए। इसमें सबका योगदान ज़रूरी है।