"कभी सच का आईना कही जाने वाली पत्रकारिता, आज TRP, प्रचार और पक्षपात की गिरफ्त में है। क्या चौथा स्तंभ दरक रहा है?"

 ज़ुबेर कुरैशी 

आज का युग सूचना का युग है, जहां हर व्यक्ति खबरों से जुड़ा रहना चाहता है। परंतु जब वही खबरें भ्रम फैलाने का साधन बन जाएं, जब पत्रकारिता सच्चाई के बजाय सनसनी को प्राथमिकता देने लगे, तो यह न केवल लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है, बल्कि पत्रकारिता की आत्मा के लिए भी एक गहरी चोट है। एक समय था जब पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता था। समाचार माध्यम सत्ता को आईना दिखाते थे, आम जनता की आवाज़ को बुलंद करते थे और निष्पक्षता को सर्वोच्च प्राथमिकता देते थे। लेकिन आज वही पत्रकारिता व्यापार बन चुकी है। TRP की दौड़, राजनीतिक पक्षधरता और विज्ञापनों की चकाचौंध ने पत्रकारिता को उसके मूल उद्देश्य से भटका दिया है। आज कई पत्रकारों की विश्वसनीयता पर सवाल उठने लगे हैं। कई बार देखा गया है कि तथाकथित ‘पत्रकार’ बिना किसी शोध या साक्ष्य के केवल अफवाहों को खबर का रूप दे देते हैं। सोशल मीडिया पर फर्जी खबरें फैलाकर खुद को पत्रकार बताने वाले ऐसे लोग पत्रकारिता को बदनाम कर रहे हैं। असली मुद्दों से ध्यान हटाकर भटकाव पैदा करना जैसे एक नई शैली बन गई है। पत्रकारिता में गिरावट का दूसरा पहलू मीडिया संस्थानों पर कॉर्पोरेट और राजनीतिक दबाव है। जब बड़े-बड़े मीडिया हाउस किसी पार्टी या उद्योगपति के प्रभाव में काम करने लगें, तो निष्पक्ष पत्रकारिता की उम्मीद कैसे की जा सकती है? आज कई पत्रकारों को अपनी नौकरी बचाने के लिए सच्चाई छिपानी पड़ती है, और कुछ को बिकाऊ होने के आरोपों का सामना करना पड़ता है।

हालांकि, इस अंधकार में कुछ उम्मीद की किरणें भी हैं। आज भी कुछ निडर और ईमानदार पत्रकार हैं, जो सीमित संसाधनों के बावजूद ज़मीनी सच्चाई सामने लाने का प्रयास करते हैं। डिजिटल मीडिया और स्वतंत्र पत्रकारिता प्लेटफॉर्म्स ने जनता को एक विकल्प दिया है, जहां बिना दबाव के, निर्भीक रूप से खबरें दी जा रही हैं। जरूरत इस बात की है कि हम बतौर पाठक, दर्शक और नागरिक सजग बनें। फर्जी खबरों और पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग को पहचानें, और सत्य तथा जिम्मेदार पत्रकारिता का समर्थन करें। साथ ही, पत्रकारिता के विद्यार्थियों और नवोदित पत्रकारों को यह समझना होगा कि पत्रकारिता सिर्फ करियर नहीं, एक ज़िम्मेदारी है – समाज के प्रति, सच्चाई के प्रति और लोकतंत्र के प्रति। जब पत्रकार फिर से अपने मूल्यों की ओर लौटेंगे और पत्रकारिता को मिशन की तरह अपनाएंगे, तभी इस क्षेत्र की खोई हुई गरिमा लौट सकेगी।