ओसाफ शाहमीरी खुर्रम, लेखक वरिष्ठ पत्रकार

हदीस शरीफ़ की किताबों में लिखा है कि हज़रत मौला अली करम उल्लाहे वजहुल करींम से रिवायत है कि  हुज़ूर पाक सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि 
 "जब शाबान की 15 वीं रात आये तो तुम लोग रात को खूब इबादत करो और दिन को रोज़ा रखो, इस रात में खुदा ए तआला आसमाने दुनिया पर तजल्ली फरमाता है और ऐलान फरमाता है कि है ! कोई मगफिरत का तलबगार तो मैं उसे बख्श दूं,
है ! कोई रोज़ी मांगने वाला तो मैं उसे रोज़ी दूं,
है ! कोई बला, बीमारी व मुसीबत से छुटकारा मांगने वाला तो मैं उसे रिहाई दूं, रात भर ये ऐलान होता रहता है यहां तक के फ़ज्र का वक्त शुरू हो जाता है,
📚 इब्ने माजा,जिल्द 1,सफह 398)
📚 मिश्कात,सफह 115)
📚 अत्तरगीब,जिल्द 2,सफह 52)

हदीस शरीफ़ 

उम्मुल मोमेनीन हज़रत  सय्यदना आईशा सिद्दीक़ा रज़िअल्लाहु तआला अन्हा फरमाती हैं कि एक रात हुज़ूर पाक सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम मेरे पास से अचानक बिना कुछ बोले उठकर चले गए, काफी देर तक जब मैंने उन्हें अपने ना पाया तो मैं उनकी तलाश में निकली तो आपको जन्नतुल बक़ी के कब्रिस्तान में पाया तब आपका सरे मुबारक आसमान की तरफ था,
जब हुज़ूर पाक सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम ने मुझे देखा तो फरमाया कि ऐ आईशा क्या तुझे ये गुमान था कि  अल्लाह का रसूल तुम पर जुल्म करेगा इस पर मैंने अर्ज़ किया कि या रसूलल्लाह सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम मैंने सोचा के शायद आप अपनी किसी और बीवी के पास तशरीफ ले गए हैं,
तो आप फरमाते हैं के आज शाबान की 15 वीं रात है आज रात मौला तआला इतने लोगों को बख्शता है जिनकी तादाद बनी क़ल्ब की बकरियों से भी ज़्यादा होती है,
📚 तिर्मिज़ी,जिल्द 1,सफह 403)
📚 इब्ने माजा,जिल्द 1,हदीस 1389)
📚 मिश्कात,सफह 114)

मुसलमानों आप ज़रा सोचिये कि जब शबे बारात की रात में नबी पाक सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम खुद क़ब्रस्तान जाकर ज़िकर ए ईलाही करते हैं तो फिर हम सारे उम्मती क्यों हुजुर पाक की सुन्नत पर अमल करने के लिए  क़ब्रस्तांन नहीं जा सकते,
इस हदीस शरीफ़ से क़ब्रस्तान और बुज़ुर्गों के मज़ारों दरगाहों पर जाना और अल्लाह का ज़िकर करना सही  साबित हुआ,
हदीस शरीफ 

हुज़ूर पाक सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम रमज़ान के अलावा सबसे ज़्यादा रोज़े शाबान के माह  में रखते यहां तक के कभी कभी पूरा महीना रोज़े रखकर  गुज़ार देते,
सहाबी ए रसूल हज़रत ओसामा बिन ज़ैद रज़िअल्लाहु तआला अन्ह ने हुज़ूर पाक सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम से इसकी वजह पूछी तो आप फरमाते हैं कि  इस महीने में बन्दे के आमाल खुदा की तरफ पेश किये जाते हैं तो मैं ये चाहता हुँ कि  जब मेरे आमाल खुदा की बारगाह में पेश किये जायें तो मैं रोज़े से रहूं,
📚 निसाई,जिल्द 3,सफह 269)

हदीस शरीफ़

हुज़ूर पाक सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि 

शबे बारात की इस रात में अल्लाह तआला तमाम मख्लूक़ की बख्शिश फ़रमाता है सिवाए शिर्क करने वाले और कीना रखने वालों के,
📚इब्ने माजा,जिल्द 1,हदीस 1390)

फुक़्हा फ़रमाते हैं 

बाज़ रिवायतों में मुशरिक,जादूगर,काहिन,ज़िनाकार और शराबी भी आया है के इनकी बख्शिश नहीं होगी या ये के तौबा कर लें, और गुनाह छोड़ दें
📗बारह फज़ाइल,सफह 406)

फुक़्हा फ़रमाते हैं

जो भी शबे बारात की इस रात में 2 रकअत नमाज़ पढ़ेगा तो उसे 400 साल से भी ज़्यादा ईबादत का सवाब अता किया जायेगा,
📚 नुज़हतुल मजालिस,जिल्द 1,सफह 132)
फुक़्हा फ़रमाते हैं
हुज़ूर पाक सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि एक नफ्ल रोज़े का सवाब इतना है के अगर पूरी रूए ज़मीन में सोना भर दिया जाए तब भी पूरा ना होगा,
📚 बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 95)

फुक़्हा फ़रमाते हैं

अगर इस रात पानी में बैर के पेड़ की 7 पत्तीयों को जोश देकर उससे ग़ुस्ल करे तो इन्शा अल्लाह तआला पूरा साल जादू और सहर से महफूज़ रहेगा,
📗 इस्लामी ज़िन्दगी,सफह 77)

नमाज़ें इस रात में बहुत हैं और सबकी अपनी अपनी फज़ीलत है मगर याद रखें के नफ्ल इबादतें जितनी भी हैं चाहें वो नमाज़ हो या रोज़ा उसी वक़्त क़ुबूल होगी जब कि आप पर फर्ज़ नमाज़ का ज़िम्मा पर बाक़ी ना हो,
लिहाज़ा जिसकी नमाज़ क़ज़ा हो वो क़ज़ा-ए-उमरी पढ़े और जिनका रमज़ान का रोज़ा क़ज़ा हो वो शबे बराअत मुहर्रम शरीफ आशूरा वग़ैरह के रोज़े के बदले रमज़ान के रोज़े की क़ज़ा की नियत करे,
जिनकी बहुत ज़्यादा नमाज़ें क़ज़ा हों उसको आसानी से अदा करने के लिए 

फुक़्हा फ़रमाते हैं

कज़ा ए उमरी के लिए एक दिन की 20 रकात नमाज़ पढ़नी होगी पांचों वक़्त की फर्ज़ नामाज़ें  और इशा की नमाज़ के वित्र,
 नियत यूं करें
नियत की मेंने दो रकअत नमाज़ फ़र्ज़ क़ज़ा जो मेरे ज़िम्मा बाक़ी हैं उनमें सबसे पहली फ़जर की नमाज़  अल्लाह तआला के लिए मुंह मेरा तरफ़ कअबा शरीफ़ के तरफ अल्लाहु अकबर कहकर हाथ बांध लें यूंही फज्र की जगह ज़ुहर अस्र मग़रिब इशा वित्र सिर्फ नमाज़ो का नाम बदलता रहे, क़याम में बिस्मिल्लाह सना से शुरू करे,बाद सूरह फातिहा के कोई सूरह मिलाकर रुकू करे और रुकू की तस्बीह सिर्फ 3 बार पढ़े फिर यूंही सजदों में भी 3 बार ही तस्बीह पढ़े इस तरह दो रकअत पर क़ाअयदा करने के बाद ज़ौहर अस्र मग़रिब और इशा की तीसरी और चौथी रकअत के क़याम में सिर्फ 3 बार तसबिह कहे और रुकू करे आखरी क़ाअदे में अत्तहीयात के बाद दुरूदे इब्राहीम और दुआए मासूरह कहकर सलाम फेर दें,वित्र की तीनो रकअत में सूरह मिलाइ जाएगी और  दुआये क़ुनूत के साथ  सिर्फ अल्लाहुम्मग़ फिरली कह लेना काफी है,
📚 हिस्सा 1,सफह 62) ये रियायत है क़ज़ा ए उमरी नमाज़ पढ़ने वाले के लिए,

हदीस शरीफ़ 

उम्मुल मोमेनीन सय्यदना आईशा सिद्दीक़ा रज़िअल्लाहु तआला अन्हा फरमाती हैं कि  हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम को अमुमन खाने में हलवा और शहद बहुत पसन्द हैं ,
📚 बुखारी,जिल्द 2,हदीस 5682)

फुक़्हा फ़रमाते हैं

शबे बराअत में हलवा पकाकर ईसाले सवाब करना जाइज़ और बेहतर है,
📗 जन्नती ,सफह 123)

मगर अवाम में जो ये मशहूर है कि  इस दिन हज़रत उवैस क़रनी रज़िअल्लाहु तआला अन्ह की फातिहा करते हैं और इसकी दलील ये देते हैं कि  हुज़ूर पाक  सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का जंगे ओहद में दन्दाने मुबारक शहीद होने की खबर सुनकर हज़रत उवैस क़रनी रज़िअल्लाहु तआला अन्ह ने अपने सारे दांत तोड़ डाले थे ये रिवायत साबित नहीं है बल्के शबे बराअत और हज़रत उवैस क़रनी रज़िअल्लाहु तआला अन्ह में कोई सीधा कनेक्शन नहीं  लिखा है, हां रही बात ईसाले सवाब की तो बिलकुल हज़रत उवैस क़रनी रज़िअल्लाहु तआला अन्हु का नाम भी नज़्र में शामिल किया जाए इसमें कोई हर्ज नहीं मगर लोगों की इस्लाह की जाए कि  बेअस्ल बातों से ज़रा परहेज़ करें, युंही फातिहा व नज़रों नियाज़ हर उस चीज़ पर कर सकते हैं जिसका खाना हलाल जाइज़ है उसके लिए किसी खास खाने की क़ैद लगाना भी दुरुस्त नहीं है लिहाज़ा जिसके जो दिल में आये खूब पकाकर ईसाले सवाब करे, और गरीबों को खिलाऐ पिलाये , 
फातिहा घर का मर्द व औरत में से कोई भी पढ़ सकता है बेहतर है कि जो सही क़ुरान पढ़ सकता हो वही फातिहा पढ़े, किसी भी मौलवी से उसको पैसा रक़म देकर फातेहा पढ़वाने का तरीक़ा बिलकुल साबित नहीं है, दुरुस्त भी नहीं है , 
आप फातिहा इस तरह पढ़ें       
दुरुद शरीफ  7 बार
चारों कुल शरीफ , सूरह फातिहा 1 बार
सूरह बक़र का पहला रूकु 1 बार,आयतल कुर्सी 1 बार,फिर दुरुद शरीफ 3 बार

अब हाथ उठाकर बिस्मिल्लाह शरीफ और दुरुद शरीफ और अरबी में कुरान पाक की दुआएं पढ़ें उसके बाद इस तरह अपनी दुआ शुरू करें और युं कहें कि 

ऐ परवरदिगार ए आलम ,माबूद बरहक़ या रब्बे रहींम ओ करीम जो कुछ भी मैंने ज़िक्रो अज़कार दुरूदो तिलावत की है या जो कुछ भी नज़रों नियाज़ पेश की है इनमे जो भी कमियां रह गई हों उन्हें अपने हबीब पाक के सदक़े में माफ फरमा कर क़ुबूल ओ मकबूल  फरमा, मौला करीमं इन तमाम आमाल खैर पर अपने शाने करम के हिसाब से अपनी शायान ए शानं अजर ओ सवाब अता फरमा, इस सवाब को सबसे पहले मेरे आक़ा व मौला हज़रत मुहम्मद मुस्तफा सल्लललाहू तआला अलैहि वसल्लम की बारगाह ए बेकस पनाह में अता फरमा , उनके सदक़े व तुफैल से तमाम अम्बिया ए किराम, रसूलाँन ए इज़्ज़ाम , पैगंम्बरान ए किराम ,अज़वाज ए मुताहिरात,अहले बैतेअतहार किराम,शोहदा ए किराम, सहाबा ए किराम, ताबेईन,तबे ताबेईन किराम औलिया ए किराम, मुत्ताकीय़ान सूफिया ए इस्लाम,सल्फ सालेहीने किराम खुसूसन शाहे जीलांन हज़रत सय्यदना मीर मुहीउददींन शेख अब्दुल कादर जीलानी ग़ौसे आज़म,और अता ए रसूल हज़रत सय्यदना ख्वाजा मुईंनउद्दीन हसन चिश्ती गरीबनवाज़ अजमेरी रज़िअल्लाहु तआला अन्ह की बारगाह में अता फरमा इन तमाम के सदक़े तुफैल से इसका सवाब तमाम सलासिल ए हक के पीराने इज़्ज़ाम की बारगाह में अता फरमा,बिलखुसूस सिलसिला आलिया क़ादिरिया,चिश्तिया,सोहरवर्दीया नक़्शबन्दीया, रिफाइया,मदारिया,शुत्तारिया के जितने भी औलिया ए  किराम मशायखे किराम हैं उनको अता फरमा,मौला करींम इन तमाम के सदक़े व तुफैल से इन तमाम आमाल खैर का सवाब खुसूसन .....जिसका भी नाम लेना चाहें लें...... को भी अता फरमा कर हम सबके जददे आला हज़रत आदम अलैहिस्सलाम से लेकर आज तक व क़यामत तक जितने भी मोमेनीन व मोमिनात जो दुनियां से गुज़र चुके हैं या गुज़रते जायेंगे उन तमाम की रूहे पाक को अता फरमा और फिर अपनी मुस्तुजाब दुआयें करके दुरुदे पाक और कल्मा ए तौहीद शरीफ पढ़कर अपने चेहरे पर हाथ फेर लें . आमीन ...