"जब शिक्षा की कुर्सी से अज़ान पर ऐतराज़ उठे..."
📰 “जब शिक्षा देने वाला ही पक्ष ले, तो समाज का संतुलन बचेगा कैसे?”
भोपाल का हमीदिया कॉलेज – एक प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान, एक ऐसा परिसर जहाँ ज्ञान की रोशनी फैलनी चाहिए… लेकिन अब वहीं से एक ऐसा बयान आया है, जिसने पूरे भोपाल और उससे आगे पूरे प्रदेश को चौंका दिया है।
कॉलेज की प्रिंसिपल डॉ. पुष्पलता चौकसे ने उच्च शिक्षा विभाग के एसीएस को बाकायदा पत्र लिखकर शिकायत की है कि…
परीक्षा के दौरान अज़ान की आवाज़ से “डिस्टर्बेंस” होता है।
अब सवाल ये है कि –
क्या वाकई अज़ान से परीक्षा रुक गई थी?
क्या वाकई अज़ान की आवाज़ NEET और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की उत्तर पुस्तिकाओं को डिगा देती है?
या फिर ये एक पूर्वनियोजित बयान था, जिसका मक़सद था रिटायरमेंट से पहले अपनी ‘धार्मिक निष्ठा’ का publicly registered certificate हासिल करना?
🧠 जब ‘अज़ान’ बना असहजता का कारण... या बहाना?
प्रिंसिपल के अनुसार, कॉलेज से सटा एक गेट मस्जिद की ओर खुलता है, जिससे मस्जिद से आने वाली अज़ान की आवाज़ परिसर में गूंजती है।
अब उन्हें लगता है कि यही आवाज़ परीक्षा के दौरान विद्यार्थियों की एकाग्रता भंग कर रही है।
लेकिन यही अज़ान तो वर्षों से होती आ रही है।
तो क्या शिक्षा विभाग ने अब तक इसके बावजूद विद्यार्थियों को डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक नहीं बनाया?
क्या पूरे देश में हो रही लाखों परीक्षाएँ किसी धार्मिक स्थल के बिना आवाज़ के क्षेत्र में ही आयोजित होती हैं?
या फिर ये महज़ एक "selective discomfort" है — जो एक खास समुदाय की आवाज़ से ही उठती है?
🕰️ रिटायरमेंट से पहले धार्मिक पिच पर आख़िरी शॉट?
डॉ. चौकसे महज दो महीने बाद रिटायर होने जा रही हैं।
ऐसे में उनका ये अचानक “धार्मिक चिंता” से भरा पत्र शक की दिशा में जाता है।
क्या यह बयान नौकरी के बाद किसी नई पोस्टिंग की तैयारी है?
या किसी विचारधारा को खुश करने की अंतिम कोशिश?
क्योंकि जब प्रिंसिपल मस्जिद की अज़ान से “परेशान” हो रही थीं,
तब शायद उन्हें याद नहीं रहा कि ये भोपाल का हमीदिया कॉलेज है —
जिसकी नींव ही गंगा-जमनी तहज़ीब और मुस्लिम छात्रों के लिए शिक्षा की समरसता पर रखी गई थी।
🏗️ ज़मीन की बात… या सियासत की चाल?
पत्र में यह भी जिक्र आया कि यदि वह विवादित ज़मीन कॉलेज की है तो वहाँ खेल मैदान बनाया जाएगा।
अब ये सवाल और ज़्यादा गंभीर हो गया है —
क्या वाकई मसला “अज़ान की आवाज़” है?
या उस ज़मीन की ललचाई निगाहें, जिसे धार्मिक स्थल से जोड़कर देखा जा रहा है?
क्या पूरा विवाद शिक्षा की पवित्रता से जुड़ा है या
ये ‘लैंड पॉलिटिक्स’ और ‘धर्म की राजनीति’ का मिला-जुला ड्रामा है?
📢 सवाल तो उठेंगे, क्योंकि…
जब एक प्रिंसिपल यह तय करने लगे कि परीक्षा के समय कौन सी धार्मिक आवाज़ सुनाई दे और कौन सी नहीं —
तो वहाँ शिक्षा नहीं, सत्ता की सुगंध महसूस होती है।
जब देश में धर्म के नाम पर बँटवारा रोकने की ज़रूरत हो —
तब भोपाल जैसे शहर में एक अफसर धार्मिक असहिष्णुता की चिंगारी छेड़े,
तो समझिए –
ये शिक्षा का नहीं, सोची-समझी योजना का ‘टेस्ट पेपर’ है।
📍 अंत में: नारद मुनि LIVE पूछता है…
क्या मस्जिद की अज़ान वाकई शिक्षा के लिए खतरा है या कुछ लोगों के एजेंडे के लिए बहाना?
क्या एक रिटायर होती प्रिंसिपल शिक्षा छोड़कर धर्म की डिग्री बाँटने निकली हैं?
और अगर कल को मंदिर की घंटियाँ, जुलूस के लाउडस्पीकर, या गरबा के डीजे पर भी कोई छात्र सवाल उठाए — तो क्या हम उन पर भी FIR दर्ज करवाएंगे?
अगर जवाब “नहीं” है…
तो फिर अज़ान पर सवाल सिर्फ़ एक धर्म के ख़िलाफ़ माहौल बिगाड़ने की कोशिश है —
जो निंदनीय भी है, और खतरनाक भी।
✍️लेखक: जुबेर कुरैशी
(वरिष्ठ पत्रकार, नारद मुनि LIVE)