जुबेर कुरैशी

नारायण नारायण!
हे प्रभु! जब-जब न्याय को राजनीति की छांव में तपते देखा है, तब-तब नारद ने वीणा को एक ओर रखकर कलम उठा ली।
इस बार बात हो रही है मध्यप्रदेश सरकार के मंत्री विजय शाह की...
बोले कुछ ऐसा कि लगा जैसे शब्द नहीं, आग के गोले उगले हों। मामला कोर्ट पहुंचा, और फिर जो हुआ, वो तो स्वर्गलोक तक में चर्चा का विषय बन गया है।
 प्रभु! आज मध्य प्रदेश में
न्याय की वो गूंज सुनाई दी , जिसने सत्ता की गलियों तक को हिलाकर रख दिया हैं, लेकिन बावजूद इसके अब तक ना तो बेशर्म मंत्री ने इस्तीफा दिया और ना ही निरंकुश सरकार ने इस बेशर्म मंत्री को मंत्रिमंडल से बर्खास्त किया,, चाल चरित्र और चेहरे का प्रतिनिधित्व करने वाले दल के मुख्यमंत्री बोले, न्यायालय ने इस्तीफा देने को नहीं कहा है 

प्रभु! जब कानून को सत्ता की चुप्पी के नीचे दबा दिया जाए, जब मंत्री भाषण की आड़ में देश के गर्व नीचा दिखाने की कोशिश करें और नफरत का व्यापार करे, और पुलिस उसकी चरणवंदना में जुट जाए, तब न्यायपालिका का सख्त स्वर ही आखिरी आस बनता है... और वही हुआ जब माननीय जबलपुर हाईकोर्ट ने विजय शाह और उनकी सरकार को आईना दिखा दिया।
न्यायमूर्ति अतुल श्रीधरन और न्यायमूर्ति अनुराधा शुक्ला की पीठ ने जो कहा, वो सिर्फ आदेश नहीं बल्कि – वो सत्ता के गाल पर तमाचा हैं !
कोर्ट ने कहा –
“ये हत्या का मामला नहीं, ये भाषण का मामला है, ज्यादा जांच की ज़रूरत नहीं – FRI में जो खामियाँ हैं, वो बर्दाश्त नहीं होंगी!”
हे प्रभु! सोचिए – FIR में न तो BNS की धारा 152, 196 और 197 लगाई गई, न ही कोई गंभीर प्रयास किया गया सच्चाई सामने लाने का! क्यों? क्योंकि आरोपी कोई आम इंसान नहीं, एक "माननीय मंत्री" हैं!
पर कोर्ट ने साफ कह दिया –
“FIR अधूरी, और केवल खानापूर्ति है, दोबारा दर्ज हो मामला, एक भी धारा न छूटे!”

सत्ता की ताकत के आगे नतमस्तक सिस्टम को जब न्यायालय ने सीधा किया, तो यही लगा – धर्मराज की सभा में फिर से धर्म और नीति की गूंज हो उठी है।
विजय शाह पर आरोप है कि उन्होंने ऐसा भाषण दिया, जिससे देश की एकता को खतरा था, और समाज में वैमनस्य फैलता। लेकिन पुलिस ने मामला ऐसे दर्ज किया जैसे मंत्रीजी ने हवा में बांसुरी बजाई हो!
हे प्रभु! यह वही पुलिस है जो किसी आम नागरिक के व्हाट्सएप स्टेटस पर UAPA ठोक देती है, और जब बात मंत्री की हो तो बिना दांत के केस बना देती है!
लेकिन अब न्याय की आवाज़ आई है। कोर्ट ने साफ-साफ कहा:

धाराएं पूरी जोड़ो

नए सिरे से जांच करो

कानून का पालन हो, न कि सत्ता की सेवा!

यह फैसला सिर्फ विजय शाह के लिए नहीं, यह हर उस मंत्री, अफसर और सत्ता संरक्षित ताकत के लिए चेतावनी है, जो सोचते हैं कि कुर्सी उन्हें कानून से ऊपर बना देती है।

हे प्रभु! न्यायपालिका का यह हस्तक्षेप भारतीय लोकतंत्र में विश्वास का प्रमाण है।
ये वही देश है जहाँ राजा भी कानून के अधीन है, और मंत्री भी।
और यही तो है असली "रामराज्य", जहाँ न्याय मंदिर से निकलकर दरबारों में गूंजता है।
तो प्रभु, हम विनती करते हैं –

ऐसी ही न्यायिक शक्तियाँ बनी रहें, जो संविधान की रक्षा करें, जो सत्ता को उसकी सीमा याद दिलाएं।
आज ‘नारद मुनि LIVE’ से इतना ही, फिर मिलेंगे किसी और सत्तावान के पाखंड की परतें खोलते हुए।
तब तक याद रखिए – सत्ता आती-जाती है, पर न्याय की मशाल जलती रहनी चाहिए!

जय विधि, जय संविधान!
नारायण नारायण!

न्यूज़ सोर्स : नारद मुनि लाइव