आजादी के अमृत महोत्सव में संघ प्रमुख के विचारों की प्रासंगिकता
कृष्ण मोहन झा, वरिष्ठ पत्रकार और लेखक
हमारे देश में कुछ राजनीतिक दलों की मानसिकता ही ऐसी हो गई है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की किसी अपील अथवा केंद्र सरकार के किसी फैसले को लेकर वे सबसे पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर निशाना साधते हैं।यह सिलसिला पिछले कई सालों से चला आ रहा है । इसका सबसे ताजा उदाहरण हाल में ही तब देखने को मिला जब उन्होंने आजादी के अमृत महोत्सव में संघ की भूमिका पर संदेह व्यक्त करने वाले अनपेक्षित सवाल उठाने में भी संकोच नहीं किया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने समस्त देशवासियों से अपील की थी कि वे आजादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में अपने घरों पर तिरंगा फहराएं और तिरंगे को ही अपने सोशल मीडिया एकाउंट की प्रोफाइल पिक बनाएं। लोगों में देशभक्ति की भावना जगाने वाली प्रधानमंत्री मोदी की इस अपील का तहे दिल से स्वागत करने के बजाय कांग्रेस के कुछ नेताओं ने यह सवाल खड़ा करने में अधिक तत्परता दिखाई कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने आजादी के बाद 52 सालों तक नागपुर स्थित संघ मुख्यालय पर तिरंगा क्यों नहीं फहराया। काश, उन कांग्रेस नेताओं ने 2018 में संघ द्वारा 'भविष्य का भारत: संघ का दृष्टिकोण' विषय पर नई दिल्ली में आयोजित उस तीन दिवसीय व्याख्यान माला में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने का संघ आमंत्रण स्वीकार कर लिया होता तो उन्हें सवाल का जवाब उसी समय मिल सकता था। उस व्याख्यान माला में सरसंघचालक चालक मोहन भागवत ने 1931 की एक घटना का उल्लेख करते हुए कहा था कि' तिरंगे के जन्म से उसके सम्मान के साथ संघ का स्वयंसेवक जुड़ा है। मैं आपको सत्य घटना बता रहा हूं। निश्चित होने के बाद,उस समय चक्र तो नहीं था, चरखा था,ध्वज परर।पहली बार फैजपुर के कांग्रेस अधिवेशन में उस ध्वज को फहराया गया था। अस्सी फीट ऊंचा ध्वज स्तंभ लगाया था। नेहरू जी उनके अध्यक्ष थे। झंडा बीच में लटक गया। ऊपर पूरा नहीं जा सका और इतना ऊंचा चढ़कर उसको सुलझाने का साहस किसी का न था।एक तरुण भीड़ में से दौड़ा और सटासट उस खंभे पर चढ़ गया। उसने रस्सियों की गुत्थी सुलझाने, ध्वज को ऊपर पहुंचा कर नीचे आ गया।तो स्वाभाविक लोगों ने उसको कंधों पर उठा लिया और नेहरू जी के पास लेकर गए , नेहरू जी ने उसकी पीठ थपथपाई और कहा कि तुम शाम को खुले अधिवेशन में आओ,तुम्हारा अभिनंदन करेंगे लेकिन फिर कुछ नेता आए और कहा कि उसको मत बुलाओ,वह शाखा में जाता है। जलगांव में फैजपुर के रहने वाले श्री किशन सिंह राजपूत वह स्वयं सेवक थे। डा हेडगेवार को पता चला तो वे प्रवास करके गए । उन्होंने उनको एक छोटा सा चांदी का लोटा पुरस्कार के रूप में भेंटकर उसका अभिनंदन किया।' संघ के उक्त ऐतिहासिक कार्यक्रम में सरसंघचालक मोहन भागवत ने यह भी बताया था कि जब पहली बार कांग्रेस ने संपूर्ण स्वतंत्रता का प्रस्ताव लाहौर अधिवेशन में पारित किया तो डा हेडगेवार ने सर्कुलर निकाला कि संघ की सभी शाखाएं सभा करके कांग्रेस का अभिनंदन वाला प्रस्ताव पारित करें और उसे कांग्रेस कमेटी को प्रेषित करें। मोहन भागवत ने उक्त व्याख्यान माला में अपने उद्बोधन में कहा था कि 'डा हेडगेवार के जीवन में देश का परम वैभव,देश की स्वतंत्रता यही उनके जीवन का गंतव्य था । संघ में और दूसरा क्या हो सकता है। इसलिए अपने स्वतंत्रता के जितने प्रतीक हैं उन सबके प्रति संघ का स्वयंसेवक अत्यंत श्रद्धा और सम्मान के साथ समर्पित रहा है। इससे दूसरी बात संघ में नहीं चल सकती।' मोहन भागवत ने स्पष्ट कहा था कि संघ में भगवा ध्वज को गुरु के स्थान पर प्रतिष्ठित किया गया है परंतु स्वतंत्रता के सभी प्रतीकों के प्रति उसकी श्रद्धा, समर्पण और और निष्ठा असंदिग्ध है।यहां यह भी विशेष उल्लेखनीय है कि कांग्रेस पार्टी भले ही संघ पर निशाना साधने का कोई मौका नहीं छोड़ती परंतु मोहन भागवत ने नई दिल्ली में आयोजित उक्त व्याख्यान माला में स्वतंत्रता आंदोलन में कांग्रेस की भूमिका को सराहनीय बताते हुए कहा था कि इस आंदोलन ने देश को अनेक महापुरुष दिए।
आजादी के अमृत महोत्सव के संदर्भ में संघ की भूमिका की आलोचना करने में कांग्रेस पार्टी भले ही कोई संकोच नहीं कर रही हो परंतु शायद उसे यह ज्ञात नहीं है कि आजादी के अमृत महोत्सव में संघ ने अपनी सक्रिय भूमिका पहले ही सुनिश्चित कर ली थी। सरसंघचालक मोहन भागवत ने गत एक वर्ष के दौरान आयोजित महत्वपूर्ण समारोहों के मंच से अपने उद्बोधन में संघ के कार्यकर्ताओं को आजादी के अमृत महोत्सव कार्यक्रमों में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रेरित किया है। मोहन भागवत ने एक कार्यक्रम में कहा था कि पूरी दुनिया में जितने महापुरुष पैदा हुए उससे अधिक महापुरुषों ने भारत में दो सौ वर्षों के कालखंड में जन्म लिया। उनके जीवन को उल्लेखनीय बताते हुए सरसंघचालक ने कहा था कि उनके जीवन से हमें प्रेरणा लेना चाहिए। संघ प्रमुख ने आजादी के अमृत महोत्सव के पुनीत अवसर पर संघ मुख्यालय में तिरंगा फहरा कर संघ के उन आलोचकों को भी निरुत्तर कर दिया है जो यह मानकर ही चल रहे थे कि आजादी के अमृत महोत्सव में भी नागपुर स्थित अपने मुख्यालय में संघ तिरंगा फहराने से परहेज़ करेगा।काश उन आलोचकों ने संघ प्रमुख के उन उदगारों को गंभीरता से लिया होता जिनमें स्वतंत्रता के प्रतीक चिन्हों के प्रति संघ की अटूट श्रद्धा, सम्मान और समर्पण के लिए प्रतिबद्धता व्यक्त की गई है। संघ ने गत दिवस नागपुर स्थित मुख्यालय में संघ प्रमुख द्वारा तिरंगा फहराए जाने का जो वीडियो जारी किया है उसके साथ लिखा यह संदेश आजादी के अमृत महोत्सव में संघ की भागीदारी का परिचायक है ' स्वाधीनता का अमृत महोत्सव मनाएं,हर घर तिरंगा फहराएं, स्वाभिमान जगाएं।'
इसी संदर्भ में मैं यहां संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले द्वारा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के प्रांतीय कार्यालय में आयोजित एक समारोह में दिए गए संबोधन का उल्लेख करना चाहूंगा जिसमें उन्होंने कहा था कि ' महर्षि अरविन्द ने कहा था कि भारत को जागना है अपने लिए नहीं बल्कि सारी दुनिया के लिए, मानवता के लिए।उनकी यह घोषणा सत्य सिद्ध हुई। भारत की स्वतंत्रता दुनिया के अन्य देशों के स्वतंत्रता सेनानियों के लिए प्रेरणा बन गई और एक एक करके दुनिया के सभी उपनिवेश स्वतंत्र होते चले गए। लोकतंत्र की मजबूती के लिए, भारत के उत्थान के लिए और विश्व मानवता के उद्धार के लिए भारत की आज़ादी के इस अमृत महोत्सव के अवसर पर जीवन में कुछ करने और सफलता अर्जित करने की अनुभूति प्राप्त करें। दरअसल मैं यहां कुछ उदाहरणों के माध्यम से यह निवेदन करना चाहता हूं कि आजादी के अमृत महोत्सव के इस ऐतिहासिक अवसर पर संघ ही नहीं किसी भी संस्था या संगठन पर ऐसी छींटाकशी से परहेज़ किया जाए जिनके कारण अनावश्यक और अप्रिय विवादों के जन्म लेने से इस यादगार उत्सव की गरिमा और महत्व के प्रभावित होने की लेशमात्र भी आशंका हो। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने अभी कुछ दिन पूर्व ही अपने एक संबोधन में कहा था कि आजादी की लड़ाई में सबने मिलकर योगदान किया था । उसी तरह हम सबको मिलकर पूरे हर्षोल्लास के साथ आजादी का अमृत महोत्सव मनाना है ।